
कभी आपने सोचा है कि 13,000 साल पहले विलुप्त हो चुका कोई जानवर दोबारा इस धरती पर लौट सकता है? सुनने में फिल्म जैसी बात लगती है, लेकिन ये अब हकीकत बन चुकी है। अमेरिका की एक बायोटेक्नोलॉजी कंपनी Colossal Biosciences ने डायर वुल्फ नामक एक विशालकाय भेड़िया प्रजाति को दोबारा ज़िंदा कर दिखाया है। आइए जानते हैं इस रोमांचक विज्ञान प्रयोग के बारे में।
क्या होता है डायर वुल्फ?
डायर वुल्फ (Dire Wolf) एक प्राचीन भेड़िया प्रजाति थी जो लगभग 13,000 साल पहले उत्तरी अमेरिका में पाई जाती थी। यह आज के सामान्य भेड़ियों से कहीं ज्यादा बड़ा, ताकतवर और खतरनाक था। इसका सिर चौड़ा, जबड़ा बेहद मजबूत और शरीर भारी-भरकम होता था। माना जाता है कि इसका वज़न 70 से 90 किलो तक हो सकता था। लेकिन समय और जलवायु परिवर्तन के कारण यह प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो गई।
दोबारा कैसे लौटा डायर वुल्फ?
Colossal Biosciences ने इस विलुप्त जानवर को वापस लाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग (gene editing) का सहारा लिया। वैज्ञानिकों ने आज के ग्रे वुल्फ (Gray Wolf) के DNA को लिया और उसमें कुछ खास जीन को एडिट करके डायर वुल्फ जैसे पिल्लों को बनाया। इस प्रक्रिया को डी-एक्सटिंक्शन (de-extinction) कहा जाता है।
जन्मे तीन खास भेड़िए – रोमुलस, रेमुस और खलीसी
इस अनोखे प्रयोग से तीन खास पिल्लों का जन्म हुआ, जिनका नाम रखा गया:
1. रोमुलस
2. रेमुस
3. खलीसी
इनके नाम प्राचीन कहानियों और टीवी सीरीज ‘Game of Thrones’ से लिए गए हैं।
इन भेड़ियों की शारीरिक बनावट डायर वुल्फ जैसी है – चौड़ा सिर, बड़ी आंखें, सफेद मोटी फर, और मजबूत शरीर। इनका व्यवहार भी जंगली भेड़ियों जैसा है। रोमुलस और रेमुस नर पिल्ले हैं, जबकि खलीसी मादा है। इन सभी को एक सुरक्षित और गोपनीय जगह पर रखा गया है ताकि उनके विकास और व्यवहार का अध्ययन किया जा सके।
क्या ये सच में डायर वुल्फ हैं?
वैज्ञानिकों के बीच इस पर बहस चल रही है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये भेड़िए असली डायर वुल्फ नहीं हैं, क्योंकि इनमें केवल कुछ ही जीन बदले गए हैं। डायर वुल्फ और ग्रे वुल्फ के बीच करीब 1.2 करोड़ जीन का फर्क होता है, जबकि इस प्रयोग में सिर्फ 14 जीन को बदला गया है। इसलिए इन्हें “डायर वुल्फ जैसे” पिल्ले कहा जा रहा है।
इन तस्वीरों में देखिए ये खास पिल्ले:




क्या ये खतरनाक हो सकते हैं?
इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन वैज्ञानिक इन भेड़ियों को जंगल में छोड़ने के बजाय रिसर्च सेंटर में ही रख रहे हैं। इनका व्यवहार, खाना, शिकार की प्रवृत्ति, और इंसानों से प्रतिक्रिया को ध्यान से देखा जा रहा है।
कुछ लोगों को यह चिंता है कि अगर ऐसे जानवर बाहर की दुनिया में छोड़ दिए गए, तो वे पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ सकते हैं।
क्या फायदा होगा ऐसे प्रयोगों से?
Colossal Biosciences जैसी कंपनियों का कहना है कि यह तकनीक संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने में मददगार हो सकती है। जैसे कि:
रेड वुल्फ (Red Wolf)
स्नो लेपर्ड
बंगाल टाइगर
अगर इन जानवरों की संख्या कम हो जाए तो हम जेनेटिक क्लोनिंग के ज़रिए उन्हें बचा सकते हैं।

निष्कर्ष:
रोमुलस, रेमुस और खलीसी सिर्फ तीन नाम नहीं, बल्कि विज्ञान की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत हैं। जहां एक तरफ ये प्रयोग बहुत ही रोमांचक हैं, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़ी नैतिक और पर्यावरणीय चिंताएं भी हैं। लेकिन इतना तय है कि विज्ञान ने एक बार फिर चमत्कार कर दिखाया है।
आप इस पर क्या सोचते हैं? क्या हमें विलुप्त प्रजातियों को दोबारा ज़िंदा करना चाहिए? या प्रकृति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए? नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।